जलेबी के विभिन्न रूप और स्वाद

JALEBI

जलेबी एक रस मे सराबोर मिष्ठान है। बहुत ही अद्भुत आकृति वाली यह मिठाई खाने मे कुरकुरी और मीठी होती है। जलेबी अपने स्वाद और बेजोड़ आकार के कारण एक लोकप्रिय मिठाई है। यह पूरे भारतवर्ष में बड़े चाव से खाई जाती है। देखा जाए तो जलेबी भी भारत मे बाहर से आयी थी, परंतु भारतीय परिवेश मे ढलकर आज यह क्या आम और क्या खास सभी के मन को बहुत लुभाती है। 

जलेबी को कई नामों से जाना जाता है, जैसे - जिलापी, जेलेपी, जिलेबी, जिलिपी, जुल्बिया, जैरी। इसे संस्कृत मे कुण्डलिनी के नाम से जाना जाता है। यह भारत मे ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य देशों जैसे – बांग्लादेश, ईरान , नेपाल, पाकिस्तान आदि ।  

भारत में एक लोकप्रिय मिठाई, जलेबी मिस्र में भी बहुत प्रमुख है, लेकिन इसे यहां पर  मेशबेक कहा जाता है। दुनिया भर के अधिकांश क्षेत्रों में, यह आमतौर पर सुनहरे रंग की और छोटी होती है, लेकिन यहां इसका पारदर्शी क्रिस्टल रंग अधिक होता है और यह थोड़ा बड़ा होता है।

जलेबी मुखयतः सुबह और शाम को नाश्ते (स्नैक्स) मे बड़े चाव से खायी जाती है। देखा जाये  तो  उत्तर प्रदेश मे इसे सुबह नाश्ते मे कचोरी और समोसों के साथ खाया जाता है वही दिल्ली मे यह शाम के समय खाई जाती है। 

आम जलेबी मुख्यतः सुनहरे रंग की होती है, जिसे शुद्ध घी से विभिन्न प्रकार की सुगंधित चासनी मे डुबोकर तैयार किया जाता है । मथुरा, आगरा और पुरानी दिल्ली मे देशी घी की जलेबी बहुत लोकप्रिय हैं।  

गोहाना की देशी घी की जलेबी

हरियाणा के सोनीपत मे गोहाना जगह की जलेबी विश्व विख्यात है। इन जलेबियों की खासियत यह है कि यह एक जलेबी कम से कम 250 ग्राम तक की होती है और इन जलेबियों को सिर्फ देशी घी से ही तैयार किया जाता है। साइज़ मे काफी बड़ी होने के कारण इस जलेबी को जलेबा के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस जलेबी को बनाने का श्रेय लाला मातू राम जी को जाता है। उनकी इस जलेबी के दीवाने भारत मे ही नहीं बल्कि देश विदेशों मे भी है । 

खोया या मावा से बनी काली जलेबी 

खोया या मावा से बनी काली जलेबी का आविष्कार हरप्रसाद बडकुल ने 1889 में जबलपुर में किया था। खोया या मावा जलेबी जबलपुर (मध्य प्रदेश) की एक विशेषता है। इसे खोये से बनाया जाता है इसलिए इसका स्वाद गुलाबजामुन जैसा प्रतीत होता है। यह  स्वाद में बहुत ही लाजवाब लगती है। खोया जलेबी बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे बहुत प्रसिद्ध है। दूध के खोय से तैयार यह जलेबी स्वाद और रंगरूप मे आम जलेबी से बिल्कुल भिन्न होती है । 

इमरती  एक अनोखा रूप 


Imarti
जलेबी का प्रसिद्ध उत्तर भारतीय संस्करण इमरती मैदा के बजाय उड़द की दाल का उपयोग करके बनाया गया है और यह उत्तर भारतीयों के बीच एक परम पसंदीदा व्यंजन है। झंगिरी के रूप में  एक और नाम से जानी जाने वाली, जलेबी का यह संस्करण फूलों के पैटर्न में बैटर को तल कर बनाया जाता है और इसे ऐसे ही परोसा जाता है। सिकने के बाद सुनहरी रंग का यह व्यंजन बिल्कुल कंगन जैसा प्रतीत होता है। देशी घी मे तैयार इमरती खाने मे बहुत ही स्वादिष्ट और रसीली होती हैं । 

पनीर की जलेबी 

जब विविधता की बात आती है तो पनीर जलेबी उपलब्ध कई विकल्पों में से एक है। यह बंगाल, ओडिशा और पूर्वी भारत के अन्य हिस्सों में प्रसिद्ध व्यंजन है। इस व्यंजन  की खासियत यह है कि इसे पनीर से बनाया जाता है। पनीर को तलने से पहले इसमें डाला जाता है इसे जिस स्थान पर बनाया जाता है, उसके चारों ओर इसे “चनार जिलापी” कहते हैं। इसका स्वाद असली जलेबी से अलग होता है। 

अवरेकाई या अवारेबेले (हरी जलेबी)

बेंगलुरु को 'उबले बीन्स का शहर' भी कहा जाता है। अनादि काल से शहर का चौड़ी फलियों (जिसे कन्नड़ में अवरेकाई या अवारेबेले कहा जाता है) से प्रेम संबंध रहा है। । प्रोटीन और फाइबर से भरपूर, ये बीन्स पोषण में उच्च हैं और अक्सर कर्नाटक के कई पारंपरिक व्यंजनों में शामिल होते हैं। इन बीन्स का इस्तेमाल डोसा, उत्तपम, इडली और यहां तक कि लड्डू की विभिन्न किस्मों को तैयार करने के लिए किया जाता है। इन हरी चौड़ी फलियों का उपयोग बेंगलुरु की प्रसिद्ध अवारेबेले जलेबी तैयार करने के लिए भी किया जाता है जिसे माउंटेन ड्यू जलेबी  के रूप में जाना जाता है जो हल्के हरे रंग की होती है। 

अवारेबेले जलेबी आपकी साधारण जलेबियां नहीं हैं। सिर्फ मैदा के बजाय, इसमें बेंगलुरु की प्यारी ब्रॉड बीन्स शामिल हैं। प्रत्येक 4 किलो मैदा के लिए, 1 किलो उबली हुई फलियों का उपयोग बैटर बनाने के लिए किया जाता है। उबले बीन्स को एक पेस्ट में बदल दिया जाता है, मैदा के साथ मिलाया जाता है और 4 से 5 घंटे के लिए किण्वित किया जाता है। बैटर की तरह ही इन जलेबियों की चाशनी भी अलग होती है. सामान्य चीनी सिरप के विपरीत, अवरेबेले जलेबी में चीनी और शहद से बना सिरप होता है। और इससे सारा फर्क पड़ता है। अवरेबेले जलेबियों को तल कर शक्कर, शहद की चाशनी में डाला जाता है। 

आलू की जलेबी 

शिवरात्रि के मौके पर आलू की जलेबी का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि में जो फलाहार करते हैं या जो फलाहार नहीं भी करते हैं सभी महाशिवरात्रि के दिन आलू की लजीज जलेबी का स्वाद अवश्य चखते हैं। गिरिडीह शहरी क्षेत्र के टावर चौक में आलू की जलेबी की कई दुकानें सजाई जाती है। 

गिरिडीह, झारखंड में कई सालों से महाशिवरात्रि के मौके पर आलू की जलेबी मिलती आ रही है। इसकी बिक्री और खानेवालों में काफी वृद्धि होती जा रही है। इस जलेबी को बनाने के लिए आलू और सिंघडे के आटे का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए फलहारी करने वाले लोग इसे खाते है। गिरिडीह, झारखंड के अलावा आलू की जलेबी मथुरा शहर मे भी खासी लोकप्रिय है ।

जलेबी को खाने के विभिन्न तरीके 

एक मीठे व्यंजन के रूप मे प्रसिद्ध जलेबी को क्षेत्रीय हिसाब से विभिन्न प्रकार से खाया जाता है – जहां मध्य प्रदेश मे पोहा जलेबी को नाश्ते के तौर पर खाया जाता है वही उत्तर प्रदेश मे इसे कचोरी आलू के साथ खाया जाता है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके जैसे की कानपुर मे दही जलेबी खासी मशहूर है । इसके अलावा उत्तर भारत मे रबरी जलेबी अधिक लोकप्रिय है। आजकल यह बफै सिस्टम मे भी सर्व की जाती है। कुछ अन्य जगहों पर समोसों के साथ गरमा-गरम जलेबी खाने का चलन है । 

घर मे आप इसका एक नया व्यंजन बनाकर भी एक अनोखा स्वाद चख सकते हैं। यह व्यंजन दूध मे जलेबी को भिगोकर तैयार किया जाता है – जिसे दूध जलेबी कहते हैं। दूध जलेबी खाने मे अति स्वादिष्ट लगती है। 

यह मेरा लेख आपको हमारे एक लोकप्रिय व्यंजन “जलेबी” जो सभी की एक पसंदीदा मिठाई है के बारे मे बहुत से जानकारी से अवगत करता है । 


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